हर पळ बीत रैयौ

हर क्षिण छेड़े है

अनकैयी कहाणियां

कीं अनसुणी जबानियां

दूर कठैई दिसै

अतीत री धुंधली सी लकीर

कीं जिंदा तस्वीरां

जठी-उठी दुबकियौड़ी

सोच रै सागर में

गोता लगाय नै

जोवूं हूं म्हैं

उण पळ नै

जिणणैं पावण में

कित्ता दिन

बीत ग्या बरस या

सारो जीवण।

स्रोत
  • पोथी : बगत अर बायरौ (कविता संग्रै) ,
  • सिरजक : ज़ेबा रशीद ,
  • प्रकाशक : साहित्य सरिता, बीकानेर ,
  • संस्करण : संस्करण
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