पुहुपा पुहुपां
छिपियोड़ी
अगनी री झाळ
डोरी में बटियोड़ी
तांण
कबांण री
चौसरौ नीं होवै
वो,
साख्यात होवै काळ,
थारै हाथां रौ
अैड़ौ अबरवौ भार
कुण धारण करतौ।
जांणै किण बेळा पुळ
गुंथीजियौ,
ठावै कंठ री उडीक
आंगळियां में
पसवाड़ा फेरती रैई।
बूकियां रै करार
वो नामी जोधार
ऊंचाय
लेय गियौ थनै,
वरण नै
हरण में ढाळ
पुरसण लागौ
दूजां रै धकै।
थूं
नीं रोई ही
उण दिन
रोयौ हौ चौसरौ
रोयौ हौ मारग
रोयौ हो बगत,
उण आली जमीन
गुमेज रौ रथ
प्रीत नै चींथ
मांड
जीत रा अैनांण
नीसरगियौ
धरम धजा फरूकावतौ।
कितरा हाथां आगे
पसरिया
दो हाथ,
कितरा मारगां
चढिया उतरिया
दो पग,
पण बोळौ होय
बैठगियौ
आखौ जग,
अमूजता रैया पुहुप
सांसां रे रंग रंगीजण
ताखड़ा तोड़ती सोरम
बंधियोड़ी
बटीजती रैई
मुगती नै,
घर री उडीक,
टंगियोड़ी रैई
मोटै बारणै।
थारै करमां
लिखियोड़ौ हौ मारग
हालणौ-हालणौ-हालणौ...
मारग रै करमां
लिखियोड़ी ही आस
उडीक-उडीक-उडीक...
आस-रै करमां
मंडियोड़ौ हौ बगत
मूंन-मूंन-मूंन...
बगत
आस
मारग
हमेसा रैवै लीलाचैर
चोळा बदळै
जलमणिया
जीवणिया,
जावणिया
वारै पांण
बदळीज जावै आस
आस रै पांण मारग
मारग रै पांण बगत।
हे सदा सवागण
हे अखन कंवारी
कुदरत खुद दीनौ थनै
मां रौ नाम
थारै केसां रै बीचली रेख
आखै जग नै
कूंकूं बांटियौ,
थारी सुरंगी हथाळियां
धरती राची
मेहंदी रै रंग,
थारै नैणां री
राती चोळ
रतनाळा समन्द हळूचिया।
हियै में लियां
इकरंगी आस
थूं
बैर नै
टाबर पाळै ज्यूं पाळियौ,
रीस रै सिणगार
धुतकारती
मिनख जमारौ
जगाय अगनी
होयगी अेकमेक।
अजांण
वा कुंवरी
आपरी अचपळायां
कर लियौ
धारण
थारौ चौसरौ,
बैर नै
मारग लाधौ,
जांणतौ हौ
वो डोकरौ
सोरम
कदेई बूढी नीं होवै,
नीं होवै
कदेई
बूढी प्रीत,
उण कुंवरी रा
बांण
वो
हंस हंस छाती झेलिया,
अजांण में
होयौ हौ उणसूं पाप
जांण नै
करणौ हौ पस्चाताप
सोरम री मुगती में
उणरी मुगती ही।
वे सर नीं हा
पुहुप हा
वरमाळ रा
भेख बदळ
सोध लियौ आपरौ ठायौ,
हरण नै
वरण में ढाळ
यूं
सोरम मुगत होई।