थारै कंठां सूं

ढळती राग

जाणे उसाळी सुरंगां सूं

ओटै रळकीजतो

किरणां रौ कामणियौ उछाल

काचे रंग रौ

घुळ-घुळ कूंपळां में

कांपणौ,

पांगरणौ हेत रौ

पवनियै रे पांख

हेताळू हिये रौ

रसमसिये तालां माथै

रपटणौ,

तीखौड़े तिबारै रै तार सूं

फूटती फुंहार रो

नखताळी किरणां सू

केळीजणौ,

लखियोड़े लोटण कबूतर रौ

औळखिये खोळां में

लुट-लुट

लोटणौ,

सधियोड़े जुगल सारंग रो

मींट सू मींट ने

पोवणो

अे भंवर-लराळी गायण!

इसड़ो रीझाऊ थारो

काळजिये री फोर सूं

गावणौ।

स्रोत
  • पोथी : मिनख नै समझावणौ दोरौ है ,
  • सिरजक : नारायण सिंह भाटी ,
  • प्रकाशक : पंचशील प्रकाशन
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