चौरावै ऊभा

बारणे अड़्या

चूंतरै पसर्‌‌या

गुवाड़ पड़्या

अै गैला किणनै उडीकै

किण री बाट जोवै?

हाट-बजारां सूंनमसून

चूल्हां में ठंडी-ठर राख

परिंडां में नी छांट पाणी

पंखेरू मूंन धार्‌यां बिरछां माथै

कदै-कदास

कठै कूकरिया घूंसे

सुगन माड़ा!

भखारियां रीती

भीत लेवड़ा चिगळै

तवौ बतळावण करणी आवै

चकळौ पड़त्तर नी देवै

ऊखळी में अेक दैंत

हड़हड़ हांसै

डागळै डाकण

फदाका भरै

निस्कारा न्हांकती

पर री घिराणी

मन मांय कळाप करै

आलीजा आज्यौ घरां

कै धान बिनां भूखां मरां!

छापै में उडतो

फड़फड़ करतो

आवै नागौ समंचार

कै अवकै बिरखा रा जोग है

नेता घणां छींकै

अर गरज

कम खावो।

हळोतिये सारू

नाज काठी राखौ

रोजीनां तीन पौर

वै जन्ता नै बरजै!

नाज काज

थोथां रौ राज

अेक सौ चवांळीस री धारा

मैंगाई री गाज

हाथां में ले लिगतरा

भाज भाईड़ा भाज!

स्रोत
  • पोथी : पगफेरौ ,
  • सिरजक : मणि मधुकर ,
  • प्रकाशक : अकथ प्रकाशन, जयपुर
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