ऊऽऽहु! थकग्यौ आज तौ। माथौ दूखै अर डील टूटै। आयौ इज हूं, अबार। थोड़ौ’क आरांम करलूं। पण किसौ बस रौ रोग है! चिंतावां खाय रैयी है। सोचूं कै इण नैं घर कैवूं कै होटल? समझ में कोनी आवै। गैरी सांस खैंच’र डील ढीलौ छोड दियौ। महीणौ तौ भळै पूरौ होयग्यौ। रिपिया दो सौ रौ बिल चुकावणौ है। पैली तारीख आवै इज क्यूं है? इण दिन खांणौ-पीणौ स्सौ हरांम होय जावै। परेसांनी परेसांनी लखावै। खरची खूटी अर यारी टूटी, याद आवै। सोचतां कै अबै तौ तगादौ होवण वाळौ है, म्हनैं झाळ-सी’क आयगी। परसूं पैली तारीख ही। अदीतवार नैं वीं दिन आवणौ हौ। पैली तारीख नैं जद अदीतवार आवै, कित्तै लोगां खातर अभिसाप बण’र आवै। काल’स बिल पास कोनी होयौ, इण खातर तिणखा कोनी मिल सकी।

आज तारीख तीन होयगी, इण खातर मां-बाप तिणखा नैं आंख्यां फाड़्यां उडीक रैया है। उडीकै तौ सरी, दूजौ कुण है कमावण वाळौ! आं री तौ अबै सरधा रैयी कोनी। लैणायत तो केई है, इण खातर आजकाल काकोजी रै चिड़चिड़ौपण कीं बत्तौ है। आज तिणखा टेमसर मिळगी, नईं तौ भळै कठैई इन्नै-बिन्नै सूं रिपियां रौ जुगाड़ करणौ पड़तौ। माइत तौ सोच कोनी सकै कै तिणखा हाल तांई सांचै कोनी मिली। वै तौ इज सोचै कै अेक तारीख नैं तिणखा हर हालत में मिल जावै, पण इज टाळ-मटोळ करतौ हुवैला। खैर, और तौ कुण देवतौ? हरीस इसै मौकै माथै आडौ आवै।

लारली दफै जरूत पड़ी जणै उण इज कड़-कड़ाता नोट दिया हा। जकां री कड़-कड़ाट हाल तांई याद है। जे वीं दिन वो ‘हेल्प’ नीं करतौ तौ भगवांन मालक हौ। ना मालूम काकोजी कांई कर बैठता? दिल री बेमारी न्यारी है वां नैं। इण कारण म्हैं वां नैं साफ कोनी कैय सक्यौ। सगळी घटना आज बाईस्कोप वाळै दांई साम्हीं अर साफ है।

बात इंयां होयी कै वीं दिन तिणखा मिलतां म्हैं भायलां साथै मटरगस्ती करण में लागग्यौ। संतोस बाबू टेढ में कैयौ हौ कै आज तौ जेबां मांय सूं नोट पळका मार रैया है। थोड़ा संभाळ’र राख्या, कठैई नीं होय जावै कै मारग में टेर जावौ। घरै काकोसा उडीकता रैय जावै।

म्हैं मुळक’र रैयग्यौ।

बातां बातां में म्हे लोग कोटगेट तांई आयग्या। मोवन अर राकेस चाय पीवण री इंछा परगट करी। मोवन बोल्यौ, “आज तौ जेबां गरम है, क्यूं डरौ? कोई पईसा नीं देसी तौ म्हैं देसूं।”

अर म्हे कॉफी-हाऊस में बड़ग्या। मांय बड़तां बैयरै पूछ लियौ, “कांई लावूं बाबूजी?”

मोवन बिगड़ग्यौ अर होटल मालक नैं ओळमौं दियौ, “इण जाट बग्गू नैं कठै सूं पकड़ लाया? इण में तौ कीं सऊर कोनी। इण नैं तौ सिखावौ कै गिरायक रै बिना मांग्यां डेढ़-डेढ पाव पांणी तौ देय दिया करै।”

“हांऽऽ बाबू सा’ब, समझा देसां छोरै नैं... आगै सारू निगै राखसी”, कैय’र होटल मालक माफी मांग ली। पछै म्हां भुजिया खाय’र कॉफी पीवी। बारै निकळती टेम काउंटर माथै पईसा देवण री होड-सी’क लागगी। चारूं पईसा देवण सारू ऊंतावळा हा।

म्हैं गुंजै में हाथ घाल्यौ, पण गुंजै उत्तर देय दियौ।

म्हारौ चेहरौ अेकाअेक उतरग्यौ। पईसा तौ मोवन दे दिया, पण म्हारी हालत खस्ता होयगी। म्हनैं चक्कर सा’क आवता लखाया। आंख्यां आडी अंधारी आयगी। भायलां म्हनैं पूछ्यौ कै अचाचूंक इंयां किंयां होयग्यौ? म्हैं माथौ दूखण रौ मिस लेय’र बात टाळ दी। ना मालूम म्हैं वां सूं बात नैं लुकोय क्यूं ली। मुसकलां सूं किंयां कर’र घरै पूग्यौ। घर में बड़तां चुपचाप सीधौ म्हारै कमरियै में जावण लाग्यौ’र का मां रौ हेलौ सुणीज्यौ, “छगन, तिणखा कोनी ल्यायौ कांई?”

वीं टेम तो म्हैं कैय’र बात टाळ दी कै आज तो सा’ब दौरै माथै गयोड़ा हा, इण खातर तिणखा तौ काल मिळ सकैला। रात पसवाड़ा बदळतां अर सोचतां काढी। दिन ऊगतां हरीस रै घरै गयौ। हरीस पूछ्यौ, “आज दिनूंगै-दिनूंगै रस्तौ किंयां भूलग्यौ? अचांणचक भायलै री ओळूं किंयां आयगी?”

“क्यूं सरमिन्दा करै है।” कैय’र म्हैं सगळी बात बताय दी। पूरी बात सुण’र वो गंभीर होयग्यौ। वीं सिंझ्या नैं मिळण रौ कैयौ। पतौ नीं कठै सूं लायौ, पण म्हनैं तो सिंझ्या रा रिपिया दो सौ मिळग्या। भायला होवै तौ इसा। ले जाय’र मां री छाती में न्हांख्या तौ बा इंयां राजी होयी जांणै कोई होटल-मालक नैं अेक महीणै रा पईसा आगूंच मिळग्या होवै। वीं नैं कांई ठाह, म्हैं अै रिपिया कठै सूं लायौ। वीं तौ इज सोची होवैला कै तिणखा लायौ हूं। म्हारै जीवड़ै रौ कळेस कुण जांणतौ? हरीस नैं रिपिया पाछा चुकावण री चिंता म्हनैं ही।

हर बगत इज चिंता खावण लागगी। छेकड़ अेक उपाय सूझ्यौ। मुसीबत में दिमाग दूणै वेग सूं कांम करै। वां दिनां राजस्थांन सरकार आपरै कर्मचारियां नैं ‘फूड ग्रेन लोन’ देवणौ सरू कर्‌यौ हौ। साढी पांच रिपिया सैकड़ा ब्याज री दर सूं दस महीणां में पाछा चुकावणा पड़ता हा। म्हैं लोन सारू अरजी लिख दीनी। बेगौ इज मंजूर होयग्यौ। मिळतां पांण दो सौ रिपिया हरीस नैं दिया। वीं तौ ऊपरी तौर सूं कैयौ हौ कै इत्ती ऊंतावळ करणै री कांई जरूत ही। पण म्हैं कैयौ, “पईसा तौ चुकावणा हा, चुका दिया। जरूत पड़्यां भळै मांग लेसूं। जा पछै ‘फूड ग्रेन लोन’ री खंदी हर महीणै बाईस रिपियां रै हिसाब सूं कटण लागगी। जद सूं लोन अर राज्य बीमा कट-कटा’र अेक सौ बाणवैं रिपिया मिळै है। पण घरै तौ पूरा दो सौ रिपिया देवणा पड़ै। कारण कै लोन तौ घर वाळां सूं छांनै लियौ हौ। इण खातर आठ-दस रिपिया आयलां-भायलां सूं उधार लेय-लेवा’र दो सौ रिपिया पूरा कर’र घरवाळां नैं देवूं। अेकर पूंणी दो सौ रिपिया देय’र लारौ छोडावण री कोसीस करी, पण पार कोनी पड़ी। घर में कळै होयगी। काकोजी चेलैंज देय दियौ कै घर में रैवणौ है, तौ पूरा पईसा दिया कर। नईं तौ थारै सूं निभै कोनी। काळौ मूंढौ कर भलांई अठै सूं।”

म्हैं सोच’र कै बाप है, कीं कैय सकै; चुप इज रैयौ। जा पछै आजकाल रोजीनै घर में राड़ रैवण लागगी। जोड़ायत नैं म्हारै सागै बिना बात रा मैंणा-मौसा सुणणा पड़ै। मां तौ कैवै जिकी कैवै, पण छोटोड़ौ भाई जचै जिंयां कैय देवै। काल वा कैय रैयी ही, “मां कैयौ है कै छगन नैं समझा। वो ऊल-जलूल खरचा कठै करै है? थोड़ौ सोच-समझ’र चालणै री सीख दै वीं नैं। छोरी जलमी है, छोरी।

पूरी तिणखा देवतौ रैसी तौ म्हे इण रौ ब्याय म्हारै हाथां कर देसां। नईं तौ पछै वो जाणै’र वीं रौ कांम। म्हांनैं कांई, दावै जिंयां करौ आगलौ। म्हैं तौ वीं रै भलै खातर कैवूं।”

सुण’र म्हनैं हंसी आयगी, कै देखौ बापड़ी छोरी तौ डेढ बरस री है अर अबार सूं ब्याव री सोच...?

अै स्साळा ऊंदरा हरांमी है, खड़का करता रैवै कोनी। खैर, चोखौ होयौ, पींजरै में पकड़ीज’र वीं म्हारी विचार तंद्रा भांग दी। इसी दुखदाई यादां नैं तौ भूलण में फायदौ है। अबै कांई पड़्यौ रैवूंला? सोच’र ऊभौ होयौ अर अेक गिलास ठंडौ पांणी गळै सूं हेठ उतार्‌यौ।

भळै आळस आळस। म्हैं बारै नीं जाय’र अठै कुरसी माथै बैठग्यौ हूं। चिंतावां ओजूं घेरा घाल रैयी है।... कीं फिजूल खरची कोनी, तौ कीं कीं खरचौ तौ होय जावै। घर वाळौ बिल चुका देसूं पण दूजै भायलां रौ करजौ होळै-होळै बध रैयौ है। अबै, वीं दरजी नैं पांच रिपिया देवणा है। तीन महीणा होयग्या है। भळैई बापड़ौ मांगै कोनी। पण वो रामा-स्यांमा करै या इत्तौ कैवै, “और छगनजी...?” वीं टेम सरम सूं माथौ झुक जावै। वो भलांई ना मांगौ, पण...। लारलै सात-आठ महीणां सूं भायलां कनै सूं आठ-दस रिपिया हर महीणै लेय रैयौ हूं। वां नैं तो पाछा फुरता करणा पड़ती। लोग किंयां तगादा सहन करलै। म्हारै सूं तौ कोई मांगै कोनी, तौ इत्ती परेसानी रैवै। घर वाळौ ‘तगादौ’ सुणीजै कोनी, पण जोर कांई? वां रै कारण तौ इत्ती परेसांनी है।

इण सूं तौ चोखौ होवतौ जे वीं दिन रिपिया गमण री बात साफ-साफ कैय देवतौ। काकोजी कांई कैवता? गाळ्यां काढ़-कूढ’र मत्तैई रैय जावता। ज्यादा सूं ज्यादा घर सूं तौ काढता? कांई होवतौ, बेटा जित्ता घर। आं नौबल तौ कोनी आवती। होय सकै कै वै मांय री मांय पी जावता। अर जे निकाळ देवता तौ इण आरथिक संकट सूं तौ पिंड छूटतौ। इन्नै वीं होटल वाळै रा दस-पंदरै रिपिया होयग्या। आं दिनां चला’र अेकलौ तौ चाय पीवण नैं बैठूं कोनी। पण भायलां रै साथै इज्जत रौ खयाल तौ राखणौ पड़ै। दो-तीन महीणा होयग्या। नईं-नईं करतां कीं बधै है। पण बापड़ौ कदैई तगादौ कोनी करै। वीं नैं म्हारै माथै भरोसौ है। पण घरै...? घरवाळां सूं तौ होटल वाळौ चोखौ। बापड़ौ इज्जत रौ तौ पूरौ ध्यांन राखै है। वीं रौ म्हारै जिसै दूजां सूं भी पालौ पड़तौ होवैला। कित्तौ खटाव करै है बापड़ौ। पण घरै खटाव कठै? खटाव होवै किंयां! समांन तौ महीणै सूं पैली खतम होय जावै। इत्तौ कमावतां थकां इत्ती परेसानी रैवै। सोच’र कदैई-कदैई तौ कूवौ-खाड करणै री सोच लूं, पण फेर लखावै कै तौ समस्या रौ समाधांन कोनी।

पईसा देवतां थकां घर में कळै क्यूं? रोजीनै री राड़ सूं बाड़ चोखी। चिंतावां सूं तौ गेल छूटै। मां-बाप है, मान्यौ कै सदां टाबरां रौ भलौ सोचै, पण टेम तौ देखणौ चाईजै। वै आजकाल बेटां नैं कमाऊ मसीन सूं ज्यादा कीं कोनी समझै। बापड़ै राधै नैं देखलौ। पूरी री पूरी तिणखा माईतां नैं देय देवतौ। वीं रौ जेब-खरच कांई है? कांई होयौ जे कणैई अैकाध कप चाय पी ली तौ। पांन, बीड़ी अर सिगरेट रै तौ वो नेड़ौ कोनी जावै। सनिमा सूं तो चिड़ है वीं नैं। वो लाई आपरै हाथ खरचै मांय सूं बचा’र पांच रिपिया महीणै रा महीणै सी.टी.डी. खातै में जमा करावतौ रैयौ। पांच बरस पूरा होयां वीं नैं सवा तीन सौ रिपिया मिळग्या। वां मांय सूं वो आपरी लुगाई खातर अेक ‘रिस्टवाच’ खरीद लायौ। इत्ती-सी बात रौ बतंगड़ बणग्यौ। वीं री मां तौ अठै तांई कैवणौ सरू कर दियौ कै वो तौ तिणखा पूरी कोनी देवै। पईसा बिचाळै राख लेवै। जणै तौ वो लुगाई रै घड़ी लियायौ। दूजा केई झूठा साचा आरोप लगाया। झगड़ौ बधतौ-बधतौ अठै तांई बध्यौ कै छेकड़ न्यारौ घर लेय’र रैवणौ पड़्यौ। अबै कांई, वीं रा मां-बाप सो’रा होयग्या? थोड़ौ धीरज सूं कांम लेवता तौ वां नैं फायदौ हौ। राधै तौ अबै पैली सूं चोखी हालत में है।

सोचतां-सोचता म्हैं जोड़-बाकी करण लागग्यौ। खाली हिसाब लगावूं कै पच्चीस फलांणै नैं देवणा... पांच फलांणै नैं...। स्सौ हिसाब देवण रौ देवण रौ है। पण देसूं कठै सूं? अबै तौ ‘फूड ग्रेन लोन’ री सगळी रकम चूकती होयां पछै सगळां नैं होळै-होळै म्हारै हाथ खरचै मांय सूं चुका सकूंला। म्हारै तौ रोवणौ इज लिख्योड़ौ है, जिकौ इंयां चालसी।

हां, काल मां, लुगाई नैं कैय रैयी ही कै छगनियै नैं पूछ तौ सरी, वीं नैं जिका दस रिपिया हाथ खरचै रा मिळै है, आखिर करै कांई है वां रौ? वीं रै तौ कीं खरचौ कोनी। इत्तौ सुस्त क्यूं रैवै है, वो आजकाल? गाभा-लत्ता फाटग्या, तौ दूजा क्यूं करा लेवै नीं।

बाईचांस रांमायण म्हैं सुण लीनी। अबै मां नैं कुण समझावै कै आजकाल दस रिपियां री कीमत कांई है? अर कपड़ा आं मांय सूं करवाणा चावै! हद होयगी स्याणप री! जे म्हारौ दुखड़ौ किणी नैं सुणाय दूं, तौ झट देणौ भरोसौ कोनी होवै वीं नैं। तौ भुगतभोगी जांण सकै। न्यारौ कोनी होय सकूं नीं। अेक तौ घर री हालत ठीक कोनी अर दूजौ छोटोड़ौ भाई हाल तांई कमावै कठै है? आजकाल तौ लुगाई केई दफै न्यारौ होवण खातर कैवण लागगी है।

अचांणचक कमरै रौ फाटक बोल्यौ। म्हारौ सोचणौ झटकै सूं बंद होयग्यौ। कमरै में कीं चांनणौ होयग्यौ। छोटोड़ौ भाई आयौ है। सायत मां मेल्यौ होवैला। हां, इज बात है। म्हनैं मां रौ सनेसौ कैय रैयौ है। म्हैं वीं रै हाथ में रिपिया दो सौ धर देवूं। वो पाछौ टुरग्यौ। वीं नैं देख’र होटल रै बेयरै रौ चितरांम साक्षात होय जावै, जिकौ चाय पियां पछै होटल रौ बिल लाय’र प्लेट में राख देवै। अठै तौ महीणौ पूरौ होयग्यौ हौ नीं...।

स्रोत
  • पोथी : साखीणी कथावां ,
  • सिरजक : भंवरलाल ‘भ्रमर’ ,
  • संपादक : मालचन्द तिवाड़ी/भरत ओळा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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