वो अेक घर मांय सूं नीसर’र दूजै घर मांय बड़्यौ। वा इज मांगण वाळै जिसी गत, “घाल अे माई! कोई ठंडौ-बासी” सूं थोड़ी अलग वीं री टेर, “अरे भाई, कस्सी घर्‌यै है कांई? कस्सी द्यौ यार! पांणी री बारी है।”

“कस्सी तौ खेत मांय पड़ी है। घरां ल्यायौ कोनी। और कोई सेवा बता।” मीठौ पडूत्तर लाध्यौ।

“और सेवा पछै बतासूं। हाल पांणी रौ टेम होर्‌यौ है। उंतावळ मांय हूं। अजै कस्सी ही नीं मिळी। औसांण कठै है अर कठै चैन। कस्सी मिळ्यां जी टिकसी अर बातां सूझसी।”

इण भांत पांच-सात घरां फिर-फिरा’र वो घरां बावड़्यौ अर पूछ्यौ, “गोटिया थनैं कांम भोळायौ हौ रै, कांई होयौ?”

“जगदीस काकै कैयौ कै थारी काकी पांणी लेवण गई है। कोठै रै ताळौ लगागी। कस्सी कोठै मांय धरी है।”

“धोळै दोपारै झ्याऊ पाड़ै है कांई कोठै नैं।” चिग्गी-सी कढावतौ “ताळौ लगागी है, नीं देवण रौ बहांनौ है।”

“कीं माथै बरड़ाऔ हौ, कस्सी मिळी कै नीं?” जोड़ायत पूछ्यौ।

“कठै? च्यार-पांच घर गाह आयौ। पालियौ नाई कैवै कै खेत मांय पड़ी है, हांसियौ बीणवाळ कैवै कै म्हारै है इज नीं, मुरारियौ कैवै कै म्हारी रौ डांडौ टूट्योड़ौ पड़्यौ है, रोसनियौ कुम्हार कैवै कै अमरियौ लेग्यौ पूगाग्यौ इज नीं। चीज दे द्यौ अर भळै कांम खोटी कर’र, जा जा’र ल्यांवता और फिरौ। कांम लेय’र चीज पुगावणी तौ जांणै कोई सीख्यौ इज नीं।” मुंह भेड़ौ-सो कर’र, “चीज देवै नीं अर ओळमौ आगूंच। पांणी आगै पाळ पैली।”

रोसनियै कुम्हार सूं जोड़ायत नैं चिड़। नांव सुणतां पांण ताती होय’र बोली, “थांनैं ठाह है बीं रै सुभाव रौ। कदै दियौ है किणीं नैं हाथ रौ उत्तर? हरमेस सूखी सुहाळी उतारै है वो। जांणतां थकां वीं रै माथै क्यूं लागणौ पड़ै? और कठैई ढोई कोनी होई थांनैं?”

“अरै भागवांन! जरूरत सारू माथै लागणौ पड़ै है अर कस्सी खातर तौ कदै-कदै बड़ै-बडै चौधरियां नैं भटकणौ पड़ज्या है। आपां तौ हां किस्यै खेत री मूळी?”

“औरां री छोडौ, खुद री करौ। थांनैं ठाह है बो निहाल कोनी करै। वळै घड़ी-घड़ी माथै लाग’र वीं रौ लींड और फुलाऔ हौ। कोई चीज रौ सारौ नीं, बोलण सूं मिस मिळ्यां गोडै घड़’र लोगां मांय उलटा-सीधा बखांण बकै बै न्यारा।” जोड़ायत तरणाटै मांय ही। रोसनियै री रीस म्हारै माथै उतारण लागी, “पांच साल होग्या न्यारा होयां नै। जित्ती बारी पांणी रौ वार आयौ है इज रांधौखांण। घर-घर मंगतां ज्यूं ढीठ होवणौ। लोगां री आछी-माड़ी सुणणी। दस घरां अलख जगाऔ जणां मसा-सी’क कस्सी लाधै। थांसूं घर री कोनी बपराईजै? कित्तौ’क मोटौ संज है। आखै दिन कांम आवण वाळी चीज है। पांणी लगावणौ, सूड़ खोदणौ, ढोरां हेठै माटी अैरी-पैरी करणी अर कदै-कदास माटी रौ तासळियौ ल्यावणौ पड़ज्या तौ करौ जणै-जणै साम्हीं खेळसी। कित्ती’क कीमत लागै है। इतणां दिनां मांय गिणती करां तौ सैकडूं घर गाह लिया। रिपियो अठन्नी घर-घर सूं मांगता तौ कस्सी रै मोल-मोल रा पईसा भेळा हो ज्यांवता। अर जे कांम खोटी होवण नै गिणां तो दो कस्सियां री कमाई भेळी हो ज्यांवती अर मौकै री व्याधि अर लोही बाळणौ रैयग्यौ न्यारौ।”

होळै-होळै पून लागण सूं कजळायड़ा कोयला सरजीवण होवै ज्यूं अबखी बातां काळजै मांय बांण ज्यूं लागण लागी। गड़ण आळी बातां सूं अर मौकै री व्याधि सूं वो तळतळीज गयौ। रीस घणी उठी पण मौकी देख’र दाबणी पड़ी, वळै झाळ-झिड़की बण’र होठां माथै आय गयी, “थूं तौ बोकड़ मुंह री है। बिनां सोचै घसड़-घसड़ कह जांणै है। मजबूरी सार थूं कांई जांणै? सरतां-बरतां कोई कीं रै मुंह नीं लागै, कोई कीं री नीं सुणै। पांणी रौ टेम होर्‌यौ है अर थनैं फालतूं री बातां सूझै है। जा रै गोटिया, सतनाराण मास्टरजी कनैं सूं घड़ी मांग ल्या अर तावळौ सो’क खेत पूग अर सुण! कह देई घड़ी रेड़ियै सूं मिळा’र देवै। पांणी खोलणौ है, कदै झोड़ बधज्या। म्हैं कस्सी लेय’र सीधी नकै माथै पूगूं हूं।”

“इसी सौरी होवै आ’र तौ दो घंटा होग्या घर-घर भिखारी बण’र फिरतां। अबै दस मिनट मांय कस्सी लाधै है?” अबै तूंबै जिस्यौ मिठास हौ जोड़ायत री बोली मांय पण....

“लाधै गी।” उण पूरै पतियारै साथै कैयौ, “लाध्यां तौ पांच सालां मांय टेमो-टेम पांणी लागतौ आयौ है।”

“लखण कांई है पांणी लागणै अर लगांणै मांय? धूड़खांणी होवै है गड़कै री गड़कै।”

उण बात नैं आई-गई करण खातर नरमाई सूं कैयौ, “थूं अजै भोळी है। खेत खड़ण वाळां रै पल्लै धूड़खांणी रैवै। फैक्ट्री कीं बाबै री लगां लेवां। खेतीखड़ां रै धूड़ स्सौ कीं है। जकी आपरी है बा इज सै सूं सवाई अर चोखी। पराई चोपड़ी सूं आपरी लूखी-लांणी आछी।” कैय’र वो बारै निसरग्यौ।

हांती थोड़ी अर हुलहुलियौ घणौ। पांणी री वार रौ घणकरै गांमै मतैई जीकर होज्या। अठारह मिनट सगळी पांणी री बारी। आधो’क बीघौ मसा-सी’क भींजै पण ईं बहानै काळ-कुसमै हर्‌यौ होज्या अर खळौ मंडज्या। खळौ मंडज्या जणां किरसौ गंगा नहायौ। नफौ-नुकसांण करण वाळौ पेसौ नीं कर सकै, कुऔ-खाड करल्यै अळगै। दाता देसी, अबै नीं तौ आगै देसी अर ईं आस मांय लूखौ खावतां, मोटौ पहरतां, टोटौ भुगततां नीची धूण घाल’र पीढी-दर-पीढी धिकावै है। धिकावै कांई है मतोमत धिकज्या है, ठाह इज नीं लागै अर लागै तौ जोर कांई? अबै जणभार घणौ होवण सूं बाह्यतौ तौ जिस्यौ पांती आसी बिस्यौ आसी। छोटौ बाह्यतौ धणी नैं खावै अर छोटौ धणी बाह्यतै नैं पण वळै पेटल्याड़ी तौ करणी इज पड़ै। अेकलै री तौ बात नीं है घणकरा अेक इज दरखत रा पांन।

गोटियौ घड़ी ल्यावण नै अर वीं रै खेत वहीर होयां पछै घरां घरधिरांणी अेकली रैयगी। साव अेकली नीं, अबै वीं साथै पीड़ ही कस्सी नीं होवण री, नीं बपराईजण री। ताता घावां री पीड़ न्यारी इज होवै। होळै-होळै सो कीं सैंगैं होज्या है पण अबार ताती पीड़ सूं रीस उठै ही म्हारै माथै, आमदनी माथै, पेसै माथै अर अपणै आप माथै, “संजा बिनां किस्या कांम? अर संज...।” बरड़ावण लागी ही कै बारै रौ हेलौ विघन घालग्यौ।

“ल्यौ अे कोई छुरिया ल्यौ, मिरिया ल्यौ, करसी...।”

“अठै अे बाई। गळी सूं लुहारी री टेर सुणतां इज हेलौ मार्‌यौ।”

पोळी बड़तां लुहारी बोली, “कांई लेसी अे काकी? चींपियौ लेसी’क खुरचणौ’क सींखळौ।” कैवती-कैवती आंगणै तांई पूगली।

“दिखा तौ सही थारै कनैं कांई-कांई है?” लेवणौ चायै कीं नीं होवै पण लुगाई सूं आपरी बात भुगतायां बिनां नीं रैईजै। लुहारी रा सगळा संज देख्या, मोल करवायौ, दांम तुड़वाया, आलोचना करी अर वळै सागण जगां आई, “इण कस्सी रौ कांई मोल है?”

लुहारी पण लुगाई। आखै दिन लुगायां सूं इज सिरफोड़ी करै। वांरी आदतां जांणै। वा अेक दिन मांय सौ जण्यां सूं मिळै तौ सौ जण्यां री अक्कल आवै अर आपरी ‘प्लस’ करै तौ...। जीत तौ छेकड़ वीं री होवणी है। घर सूं पलोथण लगा’र भटियारण कित्ता’क दिन धिक सकै है। साम्हली रै दुखती जगां फटकारी, “अे काकी, मोल सूं किस्या माल बिकै है। चींपियौ तौ लेईजै कोनी अर कस्सी और मोलावै है। कस्सी आंगणै मांय ठरकांवती बोली, “पांणी लगावण वाळी कस्सी है, सूड़ खोदण वाळी नीं है, देख! कस्सी री मूंड देख, लह देख, थाळौ देख। सीधी चादर नीं है। तळपा-तळपा’र घड़-घड़’र बणायौ है। डेढ दिन तौ हथोड़ै सूं घड़तां लागग्यौ। लुहार रै बूकियै मांय अजै तांई चीस चालै है। दिनुगै ‘डिक्लो’ लेय’र मसां आरण सारै बैठ्यौ है।”

“अै गावणा तौ रैवण दै अर करसी रौ मोल बतावै नीं।” आखती होयोड़ी-सी बोली।

“काकी थनैं लेवणी तौ आथ कोनी।”

“लेवणी है जणै तौ पूछूं हूं।”

“देख काकी! मोल-मोलाई करण री तौ म्हारी आदत कोनी। म्हैं तौ अेक बात कैया करूं हूं। जे थनैं लेवणी है तौ पूंणै दो सौ री दे देस्यूं। अर इत्तै मांय नीं लेवणी है तौ खोटी ना कर।”

“पूंणै दो सौ तौ हेला कोनी मारीजै। थनैं बेचणी कोनी, चक्यां फिरणी है, फिर!”

“लुहारी आपरौ सामांन समेटती बोली, “तौ थूं बता दे, कांई देसी?”

“बंध्यौ सौ रौ अेक लोट। लेवणौ है तौ बात कर।”

खड़ी होवती मुंह मचकोड़’र कैयौ, “काकी अे, थनैं तौ मोल करण रौ इज सूर कोनी। कोयला को लागै नीं लोह नीं लागै। मैणत रैयगी न्यारी। पेट थोथौ है। धनवाद है लुहार नैं जकौ आखै दिन हथोड़ौ बावै है। जाट रौ तौ दस हथोड़ां मांय अखताय’र माची झाल लेवै। लुहार तौ जांणै मिनख नीं होय’र गमाऊ बळद है।”

“आं बातां नैं तौ जावण दै। पांच और ले लेई, इस्यूं बेसी नीं है।”

“काठा राख काकी! अड़ी-ओड़ी मांय कांम आसी।” लुहारी पोळी निकळती बोली।

“आ सीख ना दे भलां ई। म्हारै तौ ना सावण सूखौ अर ना भादवौ हर्‌यौ। अजै तांई सगळा दिन ओड़ी रा इज रैवता आया है। कुंण लारै बगावै है।”

पोळी निकळती लुहारी पाछी मुड़’र पूछ्यौ, “डोढ सौ देवै है कांई?”

“ना बाई इत्ता कोनी। पांच-च्यार री बात होवै तौ सोदौ जचै। थूं तौ दरड़ौ खोद’र छोड दियौ।”

“थूं तौ जाबक मूंजण है अै काकी! अेक सौ दस सूं इण मुंघवाड़ै मांय कांई आवै है।”

“इण सूं बत्ती धेलौ इज नीं है। जा चायै सरसै सूं मंगवा लेस्यां। नीठ सौ लागसी अर साथै कस्सी रौ पूरौ पतियारौ। साथै छांट’र ल्यास्यां।”

पाछी बावड़’र लुहारी बोली, “कांई बात करै है अे काकी! सरसै वाळी सूं सवाई नीं होवै तौ म्हारौ नाक काट लेई। चीज रौ बरत्यां ठाह लागै है।”

“ठाह लाग्योड़ौ है। जबांन सूं निकळग्या नीं तौ अेक सौ दस घणा है।”

“अे काकी, थूं तौ जमा अड़’र बैठगी।”

“थनैं कैय दियौ नीं, इण सूं बेसी अेक धेलौ नीं है।”

“धेलौ ना देई, अेक गंठड़ी नीरौ दे देई। बळदिया भूखा है।”

“गठरी मांय मण पक्कौ आवै है।”

“मण चकण वाळौ म्हारौ डील कठै है अर छोटी-सी’क चादरड़ी है।” कोयला सूं काळी होयोड़ी चादरड़ी बिछावती लुहारी कैयौ।

“ना बाई ना, ईं छोटी-सी’क चादरड़ी रौ मुंह खुलौ है अर मांग बहोत घणी है।”

“अे छूं! धड़ी खंड मसां आसी। साम्हौ तौ करूं कोनी, बगत री अड़ री है, गऊ जायां रौ पेट भर ज्यासी, साथै थनैं पुन्न होसी।”

“मार गोळी पुन्न रै। नीरौ म्हारै हळ चालण वाळी डाग नैं कोनी। मोल आवै है अर अबकाळै थनैं ठाह है तीन सौ रै भाव नीं मिळै।”

“नीं मिळै है जद तौ बळदिया भूखा है अर निहोरा काढूं हूं, नीं और सालां भट्ठां वाळा बाळ्या करै है।” चादर रा पल्ला पकड़ती लुहारी पंप मार्‌या, “चौधर्‌यां री गुवाड़ी है। दांन दियां किस्यौ धन घटै है। कीं तौ घाल, पुन्न होसी। गऊ जाया आसीस देसी।” लुहारी चींचड़ बण’र चिपगी अर गोयड़ बण्या लारौ छोड्यौ।

अेक सौ दस नगद देय’र नीं-नीं करतां मण, सवा मण नीरै री गंठड़ी चका’र कस्सी राखली। अबार कस्सी नैं देख-देख’र मन हुळसै हौ। खुसी सूं पग मतैई उठै हा। ठाह होवतां थकां टेम सूं पैला घरधणी री उडीक मांय आंगणै सूं पोळी तांई रा केई गड़का लगा दिया जांणै क्रिकेट रौ खिलाड़ी रन बणावतौ होवै।”

वो इज वीं री उडीक नैं उतावळी सैहळी कर दी। टेम सूं घणौई पैलां घरां बावड़ग्यौ। वीं नैं देखतां वीं रौ माथौ ठणक्यौ। अणचिंती चिंतावां सूं घिरगी। उंतावळी-सी’क पूछ्यौ, “कांई होयौ? आज उंतावळा किंयां? कस्सी नीं मिळी कांई?” अनेक सवाल भेळा कर मेल्या।

खोवै सूं कस्सी उतार’र धरतियां मेल’र वो बोल्यौ, “कस्सी तौ री पण...।”

“पण...?”

अबै वो निसताई सूं बतावण ढूक्यौ, “ठायां-ठायां सगळां घरां फिर लियौ। कस्सी नीं लाधी। अचांणचकै रामसरूप सूझ्यौ पण वो आपणै जिस्यौ लाग्यौ। अेकर तौ फोड़ा देखण रौ मतौ फीकौ पड़ग्यौ। वळै ध्यांन आई आभै मांय उडण वाळौ धरती री अबखायां सार कांई जांणै? निबळौ निबळै री पीड़ नैं सांवट सकै है, सोच’र म्हैं किसानड़ै कनैं गयौ। वो कस्सी खातर सफा नटग्यौ। बोल्यौ, “म्हैं अजै बपराई कोनी।”

वा अचूंभौ कस्यौ, “दस साल होयग्या न्यारा होयां नै अर वळै आपणै सूं चौगुणौ पांणी है, कस्सी बिनां किंयां सरै?”

“कांई ठाह? वीं वाळी बात म्हैं मांनग्यौ। सोच्यौ, साची कैवतौ होसी। घर-घर माटी रा चूल्हा है पण म्हैं चालण लाग्यौ जणै अेक खूंणै मांय कस्सी दीखगी। कस्सी दिखा’र म्हैं पूछ्यौ तौ वो आपरी कूड़ नैं परोटण खातर अेक बणावटी हांसी हांस’र बोल्यौ, “आ तौ म्हैं मांग’र ल्यायौ हूं। रात नै पांणी रौ बार है। म्हांनैं चाहीजसी। घणी मिणतां करी जणां डांडै री जगां बिना छोल्योड़ौ ठूंठ फंसायोड़ी कस्सी घणी दौरी मिळी।” अर कस्सी कांनी देखतौ गळगळौ होय’र बोल्यौ, “संज बिनां किस्या कांम? खेत पूगण तांई सगळै पैंडै मांय घिरळ-मिरळ साथै लोगां रा बहाना अर तेरा तांना-अमींणा रा तीरियां सूं घणौ घायल होयग्यौ। इण खातर आज आखतौ होयोड़ौ छेकड़ साल भर खातर पांणी री बारी बेच दी, अबै सै सूं पैलां कस्सी बपरास्यां।”

“कस्सी तौ म्हैं बपराली।”

“हैं! अर पईसा कठै सूं आया?”

“दिनुगै थे दिया हा नीं।”

“वै तौ नीरै रा देवणा हा। डाग कांई म्हनैं खासी?” कैवण रै साथै उण नीरै कांनी देख्यौ। नीरै री ढिगली अेढै लागरी ही। गस आवण सूं पैलां गळी सूं गोटियै रौ हेलौ सुणीज्यौ, “माऊ अे...ऽ! बापू नैं कह देई सतनाराणजी घरां कोनी लाध्या।”

स्रोत
  • पोथी : साखीणी कथावां ,
  • सिरजक : मेहरचंद धामू ,
  • संपादक : मालचन्द तिवाड़ी/भरत ओळा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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