आभै मारग अधर उतरतो बीन पगलिया करतो धरतो

आयो रितुराज बसंत मरुधर पावणो

कुदरत रो लाडेसर स्याणो पीळै रंग पेरण नै बाणो

पुरवा री काया महकातो कळियां रस भवरां नै पातो

आयो रितुराज बसंत मरुधर पावणो

ढोळै अर मरवण सी जोड़ी रितुराणी गठजोड़ै बंधोड़ी

मुळकाता नखरा स्यूं बेवै सुरंगी रात सहेल्‍यां नै केवै

आयो रितुराज बसंत मरुधर पावणो

चतर चाँदणी बधाई बांटै धवराँ निरख सेखायी छांटै

माँग होळका देखै भरती किरत्यां कै निछरावळ करती

आयो रितुराज बसंत मरुधर पावणो

ऊमट बादळयां गावै गाळयां काढ मूंघटा अर नखराळयाँ

आडया अर्थ पूछै ज्यूं साळयां जोड़ि सराय बजावै गळयां

आयो रितुराज बसंत मरुधर पावणो

करै आरतो भोम सुहागण वीराँ री मायड़ बड भागण

मरिजादा में दरसण देवै शिव गुण गीत सरायर केवै

आयो रितुराज बसंत मरुधर पावणो।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : शिव पांडे बीकानेर ,
  • संपादक : डॉ. भगवतीलाल व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थान साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
जुड़्योड़ा विसै