सेसनाग समदर में सूतौ, लेतौ नीर हीबोळा रै

सागर लेखौ लेवतौ नै नागण गिणती छौळां रै

लैर-लैर में धमचक लागी, पांणी जाय पाळ नै लड़ियौ

काछव पूछ्यौ माछळी, कांई चूक पड़ी के घाटौ पड्यौ?

समदर देख्यौ सूरज कांनी, गरज्यौ तीर उछाळौ दै

के दै चंदा गिगन बीचलौ, के परभाती तारौ दै

भरी कचेड़ी भूंडौ लागै, पत राखण पतियारौ दै

लियां-दियां सूं कांम सरै है, पाछौ नीर उधारौ दै

सूंप्यौ माल सरप नीं खावै, तोप गिटै नीं गौळा रै

सेसनाग समदर में सूतौ, लेतौ नीर हिबोळा रै।

लेण-देण री बातां मत कर, दुनियां सुणती करै तमासौ

थारी नींव पताळां नीचै, म्हारौ थेट गिगन में बासौ

लहरां लेती हियै हिलोळा, चलती चाल पलट्यौ पासौ

प्रीत डोर में बंधगी किरणां, मोत भरोसै दियौ दिलासौ

आयौ मेघ मांगनै लेग्यो, प्रीत करै सो भोळा रै

सेसनाग समदर में सूतौ, लेतो नीर हिबोळा रै।

धूम तावड़ै कळझळ करती, तपती देखी धरती

पांन-पांन रूंखां रा झड़ग्या, बेलड़ियां बळबळती

पिणघट री पिणियारयां बिलखी, देखी हिवड़ौ भरती

सुण रे सरवर पांणी लेगी, माटी तिरसां मरती

मोत्यां री झड़ बिरखा बरसी, भरग्या ताल पिछौला रे

भावौ-भाव लियां जा पाछौ, किसी ताकड़ी तोळा रे

सेसनाग समदर में सूतौ, लेतौ नीर हिबोळा रे।

धरती बोली म्हैं करसां नै, हळ ले खेत खड़ाया

चीर काळजौ काया सूंपी, कण-कण बीज बवाया

लोही सींच्यौ लीली राखी, म्हैं मोती निपजाया

पाक्या जद तक की रखवाळी, करसां नै संभळाया

पूंख-पूंख बोहराजी लेग्या, ठाकर लेग्या होळा रे

सेसनाग समदर में सूतौ, लेतौ नीर हिबोळा रै।

सूरज मेघ समंदर माटी, बोली मौसा देती

लांणत रे धरती रा करसा, लोग लूटग्या खेती

देख रती भर रह नीं जावै, मिनख-मिनख में छेती

चेत-चेत माटी रा मांणस, दुनियां जागी चेती

भूखा मरता लुकता-झुकता, लाजै मिनख अडोळा रे

सेसनाग समदर में सूतौ, लेतौ नीर हिबोळा रे।

स्रोत
  • पोथी : चेत मांनखा ,
  • सिरजक : रेवंतदान चारण
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