ओ अेक बरस रै बाद,
रंगीलो फागण आयो राज!
सहेल्यां! लूवर गावो अे!
क धमचक चंग बजावो अे!
फूल-कळ्यां झूमै-मुळकावै,
मन-ई मन लाजै!
च्यारूंमेर उड़तो सोरम,
बायरियो बाजै!
सजायां सोवण-मोवण रूप!
रूतां रो आयो सागी भूप!
सहेल्यां! नाचो-गावो अे!
क धमचक चंग बजावो अे!
धोरां-धोरां फोग फूलग्या,
मरगोजा फूटै!
खींपां छायी खींपोळ्यां,
जस बणरायी लूटै!
खींपड़ी पसरी कोसूंकोस!
खिंडावै मोतीड़ा नित ओस!
सहेल्यां! रळमिल गावो अे!
क धमचक चंग बजावो अे!
रंगरंगीला रंग भरयोड़ी,
पिचकार्यां ल्यावो!
लाल-गुलाल अबीर उडावण,
सायेन्यां आवो!
हठीलो आयो है रुतराज!
फूल रो माथै ओपै ताज!
सहेल्यां मंगळ गावो अे!
क धमचक चंग बजावो अे!
रात रूपाळी, दिवस रंगीला,
पल-पल रस बरसै!
बागां-बागां, बाड़ी-बाड़ी
सोरमड़ी सरसै!
पंखेरू बोलै मुधरा बोल!
उडारां भरै पांखड़्यां खोल!
सहेल्यां! जुग-जुग जीवो अे!
क धमचक चंग बजावो अे!