ओ जोगी द्वार खड़्यो गावै’र बजावै मन रो इकतारो!
गीतां री झोळी भर दै तू, भगवान भलो करसी थारो!
होठां सुर-सांस अमूझै है, भाषा, ज्यूं बांझ खड़ी झुरै!
कथणा री मनस्या, जे पूरै, तो गीत गिरै कामणगारो!
अधरातां नींद उचट जावै, भैबात न फेरूं नैण ढुकै!
तूट्या सुपनां सांधण लागूं, रंगरूप चढ़ै चित रतना रो!
नैणां नै सुपनां छळ-छळ नै, हिरदै तिस अजब जगा दीनी!
भरमाभरमी मैं पियां गयो, धोखै रो पाणीड़ो खारो!
समदां सूं तिरस बुझै कोनी, अभिमान घणो है सीपी रै!
पीवै तो स्वातिबूंद पीवै, जिण में मोती रो पतियारो!
मिन्दर-मिन्दर, मैड़ी-मैड़ी, घूम्यायो, तीरथधाम कर्या!
ओ भेख धर्यो, जिणनै ढूंढ़ण, सागी बो थारो उणियारो!
भजनां सूं भाव भरै कोनी, नी ध्यान जमै है धूणी पर!
रूं-रूं रा घाव घणा दूखै, पंपोळ्यां दरद मिटै म्हारो!
पत्थर री मूरत नी पिंघळी, हेमाजळ आंसूं मांय गळ्यो!
जद हेत तनै हेलो मार्यो, गंगाजळ बण्गयो दुख सारो!
निरभागण है झोळी म्हांरी, थारी पोळी बड़भागण है!
जागण में आधी जूण गमी, ढ़ळती-ऊमर पकड़्यो द्वारो!