रण चढ़िया पट पहरियां, आवध लियौ हेक।

पिव हंदा पट ऊपरा, वारूं बगतर केक॥

केवलमात्र वेशभूषा से ही सज्जित वीर के देश-हितार्थ रणभूमि में प्रस्थान करने की विशेषता को लक्ष्य में रखकर देशसेवक पत्नी कहती है कि प्रिय देव केवल वस्त्र धारणकर और हाथ में कुछ भी शस्त्रादि लेकर मातृभूमि के हेतु युद्ध में कूद पड़े। उनकी यह वेशभूषा ऐसी अछेध्य तथा अभेध्य है कि इस पर कितने ही सुदृढ़ लौह-कवच न्यौछावर किये जा सकते है।

स्रोत
  • पोथी : महियारिया सतसई (वीर सतसई) ,
  • सिरजक : नाथूसिंह महियारिया ,
  • संपादक : मोहनसिंह ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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