कै तौ धव रण जीतिया, कै तन घाव अछेह।

दासी हरख उतावळी, आती दीसै गेह॥

वीरपत्नी अपनी दासी को हर्ष के मारे शीघ्रतापूर्वक आती हुई देखकर विचार करती है कि इस उतावलेपन का कारण क्या हो सकता है? इसके दो ही कारण हो सकते हैं— या तो स्वामी युद्ध में जीत गए हैं अथवा उनके शरीर पर असंख्य घाव लगे हैं।

स्रोत
  • पोथी : महियारिया सतसई (वीर सतसई) ,
  • सिरजक : नाथूसिंह महियारिया ,
  • संपादक : मोहनसिंह ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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