पहरै वदळै वादळी वदळ पहर वदळाय।

सूरज साजन नै सखी आसी कुणसो दाय॥

भावार्थ:- बादली पहनती हैं, बदलती है और फिर बदल कर फिर पहनती हैं। जाने सूरज को कौन सा वेष अच्छा लगेगा?

स्रोत
  • पोथी : बादळी ,
  • सिरजक : चंद्र सिंह बिरकाळी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : छठा
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