जळ सो प्यारो जीव है कण सी कोमल काय।

कुणसै कूणै वादळी, राखी वीज छिपाय॥

भावार्थ:- जल से बना तुम्हारा प्रिय जीवन है और धूलिकणों से बनी कोमल काया। बादली, तुमने कौनसे कोने में बिजली जैसी चीज को छिपा कर रखा है?

स्रोत
  • पोथी : बादळी ,
  • सिरजक : चंद्र सिंह बिरकाळी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : छठा
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