आभ अमूझी वादळी, घरां अमूझी नार।

धरां अमूझ्या धोरिया, परदेसां भरतार॥

भावार्थ:- आकाश में बादली अमूझ रही है, घरों में स्त्रियाँ अमूझ रही है, धरा पर टीले अमूझ रहे हैं और परदेशों में पति अमूझ रहे हैं।

स्रोत
  • पोथी : बादळी ,
  • सिरजक : चंद्र सिंह बिरकाळी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : छठा
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