रेत पर दूहा

रेत सूं हेत मरुथळ वासियां

रै हिंयै में हरमेस रह्यौ है। अठै री प्रतिकूलता आं बासींदां री जीवण-राग है। अठै संकलित रचनावां में 'रेत रो हेत'आप सुधि पाठकां नै निजर आवैला।

दूहा4

दोहा : गाँव

जयसिंह आशावत

वागड़ी दूहा

कैलाश गिरि गोस्वामी

चरचर करती चिड़कल्यां (बादळी)

चंद्र सिंह बिरकाळी