संकरजी
नै जाणै क्यूं, म्हंई वांपै लिखती बगत राजस्थान में गाया-जाबा हाळा अेक लोकगीत की याद आ जावै छै। बस अैन-मैन अस्या ई, छावै-जस्या ये छै—
‘अरै तो संकर्या रै, मान मस्ताना’। इनै बाच्यां सूं अर सुण्यां सूं जे भाव आंख्यां में तरबा लागै उस्या।
पहलवान छाप बीड़ी