मिनख पर ग़ज़ल

ग़ज़ल34

मिनख कैवै है कै दिवाळी है

रामेश्वर दयाल श्रीमाली

थूं तो खुद रै बारै आ

सुशील एम.व्यास

आ नगरी महाराज रामरी

सवाई सिंह शेखावत

साच समझाव अठै

लालदास 'राकेश'

वागडी ग़ज़ल

छत्रपाल शिवाजी

मनां रै मांय जळ-जळा कोनी

रामेश्वर दयाल श्रीमाली

महानगर बोध : एक गजल

रामस्वरूप ‘परेश’

वागडी ग़ज़ल

छत्रपाल शिवाजी

मत चिलकावै ठाठ भायला

जयकुमार ‘रुसवा’

माणस

कुलदीप पारीक 'दीप'

देख तो कतनी अंधारी रात है

हेमन्त गुप्ता पंकज

तन सूरज रौ काळौ कित्तौक

पुरुषोत्तम छंगाणी

वागड़ी ग़ज़ल

छत्रपाल शिवाजी

सड़क रै जणा-जणा नैं देख

रामेश्वर दयाल श्रीमाली

मनवा यूं मगरूरी मत कर

रतन सिंह चांपावत

मायड़ रा बोल

रतन सिंह चांपावत

जद बाड़ ही खेत नै खावै

कुलदीप पारीक 'दीप'

हाय! कितरो अठै अंधारो है

रामेश्वर दयाल श्रीमाली

मिनख जमारो खोटो भाई

आशा पाण्डेय ओझा