देस दिसावर रा लोग
माटी री ममता रो सिणगार करणो सुपनै रो सभाव सदा स्यूं रह्यो है। मन रै मतै चालणो, सुपनां री सीख रो सार मान्यो गयो है। देस-परदेस रो आंतरो सुपनै री सोभा होवै। कमावण-खावण सारु देस रो घणो मानखो परदेसां में बास करै। धन-माया, माण-मरदाज नैं निभावै। कुटम-कबीलो