काया पर ग़ज़ल

देह रो अरथ शरीर रै आंगिक

सरूप सूं है। मध्यकालीन बोध अर आधुनिक बोध में देह रै अरथां रो आंतरो ठाह पड़ै। अठै प्रस्तुत संकलन देह सबद रै ओळै-दोळै रचियोड़ो।

ग़ज़ल1

सब सूं महंगी काया जी

कृष्णा कुमारी ‘कमसिन’