काया पर दूहा

देह रो अरथ शरीर रै आंगिक

सरूप सूं है। मध्यकालीन बोध अर आधुनिक बोध में देह रै अरथां रो आंतरो ठाह पड़ै। अठै प्रस्तुत संकलन देह सबद रै ओळै-दोळै रचियोड़ो।

दूहा4

काया मांहि कंवलदल

हरिदास निरंजनी

बोली रड़कै बावळा

कैलाशदान कविया

तन मांहि तीरथ भला

हरिदास निरंजनी

दोहा : आडम्बर

जयसिंह आशावत