काया पर गीत

देह रो अरथ शरीर रै आंगिक

सरूप सूं है। मध्यकालीन बोध अर आधुनिक बोध में देह रै अरथां रो आंतरो ठाह पड़ै। अठै प्रस्तुत संकलन देह सबद रै ओळै-दोळै रचियोड़ो।

गीत6

म्हूं तो मन मानै ज्यूं राचूं

नरपत आशिया "वैतालिक"

अै रातां है जागण री

किशोर कल्पनाकान्त

कुण कुण नै बिलमासी

कल्याणसिंह राजावत

सन्यासी

भागीरथसिंह भाग्य

हँसो

किशन लाल वर्मा

नूवां अरथ

मोहम्मद सदीक