सूर स्यंध छेरे खाइ तासों न कीजै उपाइ,
देखत बिहंडि जाइ सो न जुद्ध कीजिये।
दारू के भुवन माहिं पावक ले संगि जाहिं,
तिनकी जु आस नाहिं बादहीं जरीजिये॥
हिमगिर कै लागि कोटि देत हैं निसान चोटि,
उबरैंगे कौन वोटि देखै तैं गरीजिये।
तैसी बिधि व्है अयान साधु सों न मांडि ज्ञान,
रज्जब की सुनहु कान च्यंतामनि मधि माग काल कौ न लीजिये॥