रैन दिनां मत रोय, अपणौ दुख औरां कनै।

कष्ट बतायां कोय, चिणा देवै, चकरिया॥

भावार्थ:- हे चकरिया, दूसरों के पास जाकर रात-दिन अपना दुख मत रो (प्रकट मत कर) अपना कष्ट बताने पर (सहानुभूति तो दूर) कोई तुझे चने तक नहीं देगा (तनिक भी मदद नहीं करेगा, दुख नहीं बँटाएगा)

स्रोत
  • पोथी : चकरिये की चहक ,
  • सिरजक : साह मोहनराज ,
  • संपादक : भगवतीलाल शर्मा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार
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