खाटी अपणी खाय, आठ पौहर समरै अनंत।

जिणरी कबू जाय, मैहळ उधारै मोतिया॥

हे मोतिया! जो अपने परिश्रम से अर्जित अपनी कमाई खाता है,और जो अष्ट-प्रहर ईश्वर का स्मरण करता है उसकी पत्नी पड़ौसियों से घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ती हेतु उधार लेने कभी नही जाती, अर्थात् नेकी की कमाई एवं ईश्वर की अनुकम्पा से उसके घर में कभी किसी वस्तु की कमी नहीं रहती।

स्रोत
  • पोथी : मोतिया रा सोरठा ,
  • सिरजक : रायसिंह सांदू ,
  • संपादक : भगवतीलाल शर्मा ,
  • प्रकाशक : श्री कृष्ण-रुक्मिणी प्रकाशन, जोधपुर
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