खड़ियां ऊसर खेत, ना कछु तामें नीपजै।

हरि सूं जोड़ै हेत, चारूं फळ दै, चकरिया॥

हे चकरिया, बंजर खेत में हल चलाने से उसमें कुछ भी नहीं उपजता है। लेकिन कोई समर्पण-भाव से भगवान विष्णु से प्रेम करे, तो वे उसे चतुर्फल (धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष) अवश्य प्रदान करते हैं। कवि का अभिप्राय यह है कि यह संसार ऊसर खेत के समान है, जिसमें मनुष्य के समस्त क्रिया-कलाप निष्फल होते हैं, केवल ईश्वर-आराधना से ही उसे फल-चतुष्टय प्राप्त होतें हैं।

स्रोत
  • पोथी : चकरिये की चहक ,
  • सिरजक : साह मोहनराज ,
  • संपादक : भगवतीलाल शर्मा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार
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