आज हि नहीं अबार, करणो ह्वै सो कर परो।

रावण बातां चार, चित में लेग्यौ, चकरिया॥

भावार्थ:- हे चकरिया, जो कुछ करना हो, उसे आज ही नहीं, बल्कि अभी निश्चयपूर्वक कर डाल। (समय निकल जाने के बाद तुम कुछ भी नहीं कर पाओगे) रावण (जैसा महान् शक्तिशाली) भी चार इच्छित बातें मन में ही ले गया (पूरी नहीं कर सका।

रावण मरते समय चार बातें अपने मन में ही ले गया था— 1. सोने में सुगंध करना, 2. स्वर्ग तक सीढ़ियों का निर्माण करना, 3. अग्नि को निर्धूम (धुआँ) रहित) बनाना एवं 4. समुद्र के जल को मीठा करना।

स्रोत
  • पोथी : चकरिये की चहक ,
  • सिरजक : साह मोहनराज ,
  • संपादक : भगवतीलाल शर्मा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार
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