दुख में दोसत दोय, धीरज कै जग रो धणी।

सुख साथी सब कोय, चट-हुय जावै, चकरिया॥

भावार्थ:- हे चकरिया, विपत्ति के समय मनुष्य के केवल दो ही मित्र होते हैं— (एक तो) धैर्य और (दूसरा) संसार-स्वामी ईश्वर; (अन्यथा) सुख ( संपत्ति) एक समय तो सब कोई शीघ्र ही साथी हो जाते हैं।

स्रोत
  • पोथी : चकरिये की चहक ,
  • सिरजक : साह मोहनराज ,
  • संपादक : भगवतीलाल शर्मा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार
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