आवत दुख इकसार, क्या ज्ञानी क्या मूढ़ नै।

इक सह धीरज धार, चीं-चीं इक, चकरिया॥

भावार्थ:- हे चकरिया, क्या तो ज्ञानी और क्या मूर्ख—दुख तो दोनों को एक समान ही आता है; परंतु इनमें एक ज्ञानी तो धैर्य धारण कर सहन करता है और (दूसरा) एक मूर्ख उसे (निरंतर) रो-रोकर भुगतता है।

स्रोत
  • पोथी : चकरिये की चहक ,
  • सिरजक : साह मोहनराज ,
  • संपादक : भगवतीलाल शर्मा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार
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