आवत दुख इकसार, क्या ज्ञानी क्या मूढ़ नै।
इक सह धीरज धार, चीं-चीं इक, चकरिया॥
भावार्थ:- हे चकरिया, क्या तो ज्ञानी और क्या मूर्ख—दुख तो दोनों को एक समान ही आता है; परंतु इनमें एक ज्ञानी तो धैर्य धारण कर सहन करता है और (दूसरा) एक मूर्ख उसे (निरंतर) रो-रोकर भुगतता है।