घड़ी घड़ी घड़ियाल, रोज़ पुकारे रैन दिन।

कंठ पकड़सी काळ, चेत चेत नर, चकरिया॥

भावार्थ:- हे चकरिया, हर घड़ी बजने वाला (समय-सूचक) घंटा हमेशा रात-दिन पुकारता है कि रे (ग़ाफ़िल) मनुष्य, सचेत हो जा, सँभल जा, (न मालूम) काल (कब आकर तेरा) कंठ पकड़ लेगा? (अतः हरि-स्मरण का सत्कार्य का करते हुए समय का सदुपयोग कर)

स्रोत
  • पोथी : चकरिये की चहक ,
  • सिरजक : साह मोहनराज ,
  • संपादक : भगवतीलाल शर्मा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार
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