बिपत पड़्यां री बार, घर रा मिळै गांव रा।

बळ, कळ, बुद्धि, बिचार, चाल्या जावै, चकरिया॥

भावार्थ:- हे चकरिया, विपदा के पड़ने के समय (साथ देने और उससे मुक्ति दिलाने हेतु) तो घर वाले ही और गाँव वाले ही आकर मिलते हैं। (इतना ही नहीं, इस बुरे समय तो में तो) स्वयं के बल, बुद्धि, युक्त्ति और विचार भी पलायन कर जाते हैं।

स्रोत
  • पोथी : चकरिये की चहक ,
  • सिरजक : साह मोहनराज ,
  • संपादक : भगवतीलाल शर्मा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार
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