बिपत पड़्यां री बार, घर रा मिळै गांव रा।
बळ, कळ, बुद्धि, बिचार, चाल्या जावै, चकरिया॥
भावार्थ:- हे चकरिया, विपदा के आ पड़ने के समय (साथ देने और उससे मुक्ति दिलाने हेतु) न तो घर वाले ही और न गाँव वाले ही आकर मिलते हैं। (इतना ही नहीं, इस बुरे समय तो में तो) स्वयं के बल, बुद्धि, युक्त्ति और विचार भी पलायन कर जाते हैं।