बहुत बुरी है बात, सदा सताणो सैण नै।

अंत आग उठ जात, चंदन रगड़्यां चकरिया॥

भावार्थ :- हे चकरिया, सज्जन व्यक्ति को सदैव सताना बहुत ही बुरी बात है (अत्यंत अधम कार्य है) (शीतलता प्रदान करने वाले) चंदन में भी घर्षण से अंततः आग उत्पन्न हो जाती है, उसी तरह (शांत स्वभाव के) सज्जन व्यक्ति में भी (विवशता—वश) अंत में क्रोधाग्नि भभक सकती है (एवं वह हानि पहुँचा सकता है)

स्रोत
  • पोथी : चकरिये की चहक ,
  • सिरजक : साह मोहनराज ,
  • संपादक : भगवतीलाल शर्मा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार
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