आयुस भर आराम, जो तूं चाहै जीव रो।

तृष्णा त्याग तमाम, चिन्त हरी नै चकरिया॥

भावार्थ:- हे चकरिया, यदि तू जीवन-पर्यंत अपनी आत्मा के लिए सुख-चैन चाहता है, तो (आकुल-व्याकुल करने वाली) समस्त तृष्णाओं का परित्याग कर दे तथा (शुद्ध मन, निर्मल हृदय से) भगवान विष्णु का (ही) चिंतन कर।

स्रोत
  • पोथी : चकरिये की चहक ,
  • सिरजक : साह मोहनराज ,
  • संपादक : भगवतीलाल शर्मा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार
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