सोई दिन आवेगा, अपणो राम संभालि वे।
अनेक रावण सेनि जोधा, मांणि मूँकातै गया।
काल झल में सकल आया, तन दावानलि दह्या॥
असुर सुर षसि पहुम ऊपरि, षड़ग कर गहि तोलता।
जुरासिंध बलि कहाँ विक्रम, बोल अंवला बोलता॥
पाँच पांडौ कहाँ कैरूँ, एक गैलै सब बह्या।
सिसपाल सेन्या कहाँ जादू, कहौ जै कोई रह्या॥
हिरणाकुस हिरणांषि मुचकंद, करण महा दानी भया।
कहौ छल बल कहाँ माया, अंति सब पाली गया॥
धर्या धूँवा सकल बिनसै, काल काँटा लागिहै।
अधर बसत अनूप अंतरि, कोइ साध गुरगमि जागिहै॥
पतिसाह भोपति कहाँ सुरपति, जाल सब परि डारिहै।
जन हरीदास ‘सूछिम’ होइ जल ज्यूँ, कोइ चोर हरिजन टारिहै॥