हरिदास निरंजनी
निरंजनी संप्रदाय रा संस्थापक। डकैतपणौ छोड़'र संत बणिया इण कारण कलियुग रा वाल्मिकी बाजै। घणकरा भजन अर पदां री रचना भगती, नीति, चेतावणी अर महात्म्य सूं संबंधित।
निरंजनी संप्रदाय रा संस्थापक। डकैतपणौ छोड़'र संत बणिया इण कारण कलियुग रा वाल्मिकी बाजै। घणकरा भजन अर पदां री रचना भगती, नीति, चेतावणी अर महात्म्य सूं संबंधित।
अब मोहि दरस दिखाइ माधवे
दस अवतार दसूँ ए देसी
एक हरि एक हरि, एक हरि साचा
गोविंद किसौ औगुण मांहि
जिवड़ा जाय कहा तूँ रहसी वे
मन रे तूँ स्याणा नहीं अयाणा रे
राम भजन हिरदै नहीं हेत
राम रस ऐसा रे
राम रस मीठा रे अब
राम विसारि मांरे ‘प्रान'
सजन सनेह रा वे
सखि हो..! गगन गरजि घन आये
सखी हो..! सांवण मास विराजै
समझि देखि कुछ नांही रे..!
संतो..! राम रजा मैं रहिए
संतो..! कुवधि काल तैं डरिये
सोई दिन आवेगा, अपणो राम संभालि वे
तब हरि हम कूँ जांणैंगे
तब हम हरि गुण गावेंगे
तोकूँ विड़द किसो दे गाऊँ