तहा मन भयो रे अडोल।

म्हारे मन बसियो रे, गुर म्हारा को बोल॥

थिति मांहै थिति पाई, आगम थी सो गुरि बताई।

तहां लागो मन लाई, तहां उपजै नहीं और काई॥

चंचल था सो निह्चल कीया, जाइ था सो फेरि लीया।

ऐसा गुरि उपदेस दीया, तिहि आलंबन लागि जीया॥

सबद मांहि सतोष पाया, मन था सो तहां लाया।

कह्या सो हाथि आया, राम रमि सहजि समाया॥

जहां गुरि थापना थापी, जप करै जहां पंच जापी।

प्रगट्यों तहां आप आपी, निरखि 'बखना' सकल व्यापी॥

स्रोत
  • पोथी : बखना जी की वाणी ,
  • सिरजक : बखना जी ,
  • संपादक : मंगलदास स्वामी ,
  • प्रकाशक : लक्ष्मीराम ट्रस्ट, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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