राम रस मीठा रे अब पिया ही सुख होइ।

मीठा ऐसे जांणिये रे, पीवै नारद सेस।

मतिवाला गोरख पीवै, रुचि-रुचि पिवै महेस॥

सींगी रिष वन मैं पीया रे, हरि रस इम्रित धार।

सुखदेव पी निरभै भया, ताकूँ जांणौं सब संसार॥

गोपीचंद निरमल पीवै रे, पीवै हँणवँत वीर।

जोगी पीवै भरथरी, जाका अणभै भया सरीर॥

स्रोत
  • पोथी : महाराज हरिदासजी की वाणी ,
  • सिरजक : हरिदास निरंजनी ,
  • संपादक : मंगलदास स्वामी ,
  • प्रकाशक : निखिल भारतीय निरंजनी महासभा ,
  • संस्करण : प्रथम
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