राम भजन हिरदै नहीं हेत।
जहाँ-तहाँ अपणां मन देत॥
मोह दोह माया मदमाता।
देखो जीव ज़हर फल खाता॥
हारि जीति का पासा हाथ।
नरकि चलै दुरमति ले साथ॥
जब लगि जीव पाँच का चेरा।
तब लग काल न छाड़ै केरा॥
जन हरीदास नर नींद न जागै।
साच कह्या काँटा सा लागै॥