मन रे तूँ स्याणा नहीं अयाणा रे..!

थोड़ी राति बहौत क्या सोवे, जागि देखि दिवानां रे॥

माया देखि कहा मन फूल्यो, देही देखि मसतानां रे।

झूठी काया झूठी माया, झूठै हेति बंधाना रे॥

हटवाड़ा आवै ज्यूँ बिछड़ै, समझि देखि गेवानां रे।

आज नहीं तौ काल्हि रहणां, मरण नदी बहि जाणां रे॥

भौपति बहौत कलै माया में, मीर मुलक सुलतानां रे।

जन हरीदास बिरला जन कोई, उलटी पांख उडाणां रे॥

स्रोत
  • पोथी : महाराज हरिदासजी की वाणी ,
  • सिरजक : हरिदास निरंजनी ,
  • संपादक : मंगलदास स्वामी ,
  • प्रकाशक : निखिल भारतीय निरंजनी महासभा ,
  • संस्करण : प्रथम
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