राम सांच जग झूठ है, बण-बण के मिट जाय।

सत धूरि पर बैठज्या, जनम-मरण नहीं होय॥

माया रचाई राम ने, सब जीवां रे ताय।

है झूठी, सांची लगे, समझ्याँ झूठी होय॥

निराकार जो राम है, महिमा अपरंपार।

सदचित आनंद रूप है, इण रो करो विचार॥

शरणागत जो राम का, पूर्ण हिरदे से होय।

काल ऊपर पग धरे, आवागमन मुक्त होय॥

बुद्धि देवे सत्ता, बो चेतन है खास।

आर-पार ज्यों का त्यों, हरदम रहवे पास॥

ज्ञान मारग है झिणो, अनुभव से ही जाण।

कहणे को है कुछ नहीं, ज्यों गूंगे का स्वाद॥

फूली ब्रह्म परकासता, तीन काल इकसार।

काल ख्याल जहाँ है नहीं, सबरो है सुखसार॥

स्रोत
  • पोथी : जाटों की गौरव गाथा ,
  • सिरजक : फूलीबाई ,
  • संपादक : प्रो. पेमाराम, डॉ. विक्रमादित्य ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : प्रथम
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