तब हम हरि गुण गावेंगे, गावेंगे गुण गावेंगै।

काम क्रोध सांसा सब जीता, मोह मता सुरझांवेंगै।

पांचो पकड़ि आप बसि लहैंगे, बंकनालि रस पावैंगे॥

दुख-सुख छाड़ि सहज धरि खेले, कुबधि सुबधि सूँ पावैंगे।

ऊजड़ छाड़ि सुलटि मन उलटा, एक दसा कूँ लावैंगे॥

सतगुर सबद चांदिणा मेरे, अगम तहाँ हम जावेंगे।

तेज पुंज परगट परपूरण, सूँनि मंडल में पावैंगें॥

घटि-घटि अघट घटत हरि नांही, सोई रमता राम रमावैंगे।

जन हरिदास दास हरि भजि-भजि, हरि ही मांहि समावैंगे॥

स्रोत
  • पोथी : महाराज हरिदासजी की वाणी ,
  • सिरजक : हरिदास निरंजनी ,
  • संपादक : मंगलदास स्वामी ,
  • प्रकाशक : निखिल भारतीय निरंजनी महासभा ,
  • संस्करण : प्रथम
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