संतौ भेष भरम कछु नाहीं।

छह दरसन छ्याणबे पाखंड, भूले परपंच माहीं॥

स्वांग सलिल संपूरन दीसै, मृगत्रिसना मन धावै।

नांव नीर तामैं कछु नाहीं, दौड़ि दौड़ि दुख पावै॥

सीत कोट माहै छिपि बैठे, कहौ वोत क्या होई।

तैसे बिधि दरसन मैं बैठे, काल छाड़्या कोई॥

सकल चित्र चिरमी की पावक, मन मरकट सब सेवै।

जन रज्जब जाड़ा नहिं उतरै, उर आंधे जिव देवै॥

स्रोत
  • पोथी : रज्जब बानी ,
  • सिरजक : रज्जब जी ,
  • संपादक : ब्रजलाल वर्मा ,
  • प्रकाशक : उपमा प्रकाशन, कानपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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