संतौ आवै जाइ सु माया।
आदि न अंति मरै नहिं जीवै, सो किनहूं नहिं जाया॥
लोक असंख्य भये जा माहीं, सो कहि गरभ समाया।
बाजीगरि की बाजी ऊपरि, येऊ सब जगत भुलाया॥
सुन्नि सरूप अकल अबिनासी, पंच तत्त नहीं काया।
औतार अपार भये आभू ज्यूं, देखत दृष्टि बिलाया॥
ज्यूं मुख एक देखि द्वै दरपन, भोलौं दस करि गाया।
जन रज्जब ऐसी बिधि जानै, ज्यूं था त्यूं ठहराया॥