मेरे मन के माने मोहनलाल, तोहि मिलन का मोहि बहुत ख़याल॥
भँवर भवै बन रवै नाँहि, वाकी निरत निवासे कँवल माँहि।
यों मेरा मन लगा तोहि, नैकक मिलने दीजै मोहि॥
कुंज चितारे धरणी छेव, चित नित रापै करे सेव।
यों मेरा मन चरन जाइ, लालचि लागो रहै लुभाइ॥
सीप समंदा जल भझारि, वा जल सों नांहि हेत प्यार।
स्वाति बूँद की रटै प्यास, यों मेरा मन हरि की आस॥
चात्रग कै चित बहुत चाइ, रटतो डोलै तिस न जाइ॥