श्रीकृष्ण बळदेवजी हरि हळधर दोउं वीर।

जाकी सनमुख जुध करै, कोण सुभट रण धीर।

सायर बांध्यो सिला तिरायी, मारयो रावण दानों।

केस पकड़ हरि कंस पछाड़यो, मारयो घर रो मामो।

जिण नख पर गोवरधन धारयो, डूबत विरज उबारयो।

नरसिंघ रूप हरि आगे धारयो, भगत पहळाद उधारयो।

पदम भणै प्रणवै पाय लागूं, तीन लोक नहीं छानो॥

स्रोत
  • पोथी : रुक्मिणी मंगळ ,
  • सिरजक : पदम भगत ,
  • संपादक : सत्यनारायण स्वामी ,
  • प्रकाशक : भुवन वाणी ट्रस्ट, लखनऊ -226020
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