साधो भाई देवल की छिब भारी, जामै बोलैं रांम मुरारी।
या देवल में देव निरंजन,जाकी सेवा करीयै।
आपही देव आप पूजारा, यूं भौ सागर तिरीयै॥
चेतन जढ देवल कुं पूजै, या तो सेवा सूंनी।
पूजन हारा बोले चालै, देव सगत विन मुंनी॥
कोई कहै जल ज्यूं ब्रह्म पूरण, चढ़ चैतन में सारै।
खोदन कीयां विना नहीं पीजै, ऐसै नहीं विचारै॥
जहां जढ़ देव जहां झड़ निरजल जहां से रहौ उदासा।
नृमल जल में रिव बप दरसै, घट चेतन का वासा॥
या देवल में है अविनासी, जाकुं लखै न वेदी।
मूलदास जन गुरगम पाई, सो या पद का भेदी॥