भगति भावै राम भगति भावै, होहु कृपाल तौ प्रान पावै।
स्वर्ग पाताल मधि लोक मांगौं नहीं, और दत दान नहिं अंग आवै॥
भक्ति भौ हरन भगवान बसि भगति कै, सिद्धि नव निधि रिधि भक्ति माहीं।
सो देउ दातार करतार करुनामई, दास कै आस उर और नाहीं॥
भक्ति मैं मुक्ति पदारथ सब सहित, भगति भगवंत नहिं भेद भीना।
परम उदार पसाव सो कीजिये, दान दीरघ पावै सु दीना॥
भक्ति भंडार भीतरि भरी सकल निधि, तुझ बिना कौन यहु मौज होई।
रज्जब रंक कौं रहम करि दीजिये, और ऐसा न दातार कोई॥