मनै चाकर राखो जी, स्याम मनैं चाकर राखो जी॥टेक॥
चाकर रहसूं, बाग लगासूं, नित उठ दरसण पासूं।
विंद्रावन की कुंज-गळिन में, गोविंद लीला गासूं॥
चाकरी में दरसण पाऊं, सुमिरण पाऊं खरची।
भाव-भगति जागीरी पाऊं, तीनूं वातां सरसी॥
मोर-मुकुट पीताम्बर सोहै, गळ वैजंती माळा।
विंद्रावन में धेन चरावै, मोहन मुरळी-वाळा॥
हरे-हरे नित बाग लगाऊं, बिच-बिच राखूं क्यारी।
सांवरिया का दरसण पाऊं, पहर कुसुंभी सारी॥
जोगी आया जोग करण कूं, तप करणै संन्यासी।
हरी भजन कूं साधु आया, विंद्रावन का वासी॥
मीरां के प्रभु गहिर गंभीरा, सदा रहो जी धीरा।
आधी रात प्रभु दरसण दीन्हे, प्रेम नदी के तीरां॥