पपइया रे! पिव की बाणी न बोल।
सुणि पावैगी विरहिणी रे थारी राळैगी पांख मरोड़॥
चांच कटाऊं पपइया रे, ऊपरि कालर लूण।
पिव मेरा मैं पीव की रे, तू पिव कहै स कूण॥
थारा सबद सुहावणा रे, जो पिव-मेळा आज।
चांच मढाऊं थारी सोवनी रे, तूं मेरे सिरताज॥
प्रीतम कूं पतियां लिखूं, कउवा! तूं ले जाइ।
जाइ प्रीतमजी सूं यूं कहै रे, थारीं विरहणि धान न खाइ॥
मीरां दासी व्याकुळी रे, पिव-पिव करत विहाइ।
बेगि मिलो प्रभु अंतरजामी! तुम बिन रह्यो न जाइ॥