गोबिंद दरसण पल पल पाऊं, दरसण पाउं बल जाऊं।
गंगाजल असनांन कराऊं, अगर चंदन चरचाऊं।
गल डारूं फूलन की माला, चरन कंवल चित लाऊं।
दीपग ग्यांन विचार उजाला, ध्यान का धूप धुपाऊं।
घंटा वीन वंसी अरु मृदंग, पंजर नाद वजाऊं।
बाल भोग नै कनक कटोरौ, सकर दूध मिलाऊं।
कलीया चुन चुन सेझ सवारूं, सांमकी सरण रहाऊं।
करूं बंदगी रहूं हजूरी, अब तो अनंत न जाऊं।
मूलदास जन कहै अवनासी, जस थारां ही गाऊं॥